Friday, 20 January 2017
भायंदर निवासी जैन पत्रकार दिनेश कोठारी के खिलाफ अपराधिक मामले में विक्रोली कोर्ट द्वारा जारी गिरफ्तारी वारंट अगली सुनवाई तक स्थगित ..

गोडवाड ज्योति संवाददाता श्रीपाल जैन
Wednesday, 11 January 2017
राजगृही वीरायतन में प्रतिष्ठा 17 फरवरी 2017 एवं चातुर्मास घोषणा 16 अप्रैल 2017 को
राजगृही/गोडवाड ज्योती: पूज्य उपाध्याय श्री अमरमुनिजी म.सा. के आशीर्वाद से एवं आचार्यश्री चंदनाश्रीजी महाराज की पावन प्रेरणा से वीरायतन के पावन परिसर में श्री पार्श्वनाथ परमात्मा का भव्य शिखरबद्ध जिनमंदीर का निर्माण कार्य हो रहा है। इस मंदिर निर्माण का संपूर्ण लाभ पूना निवासी श्रीमती शोभादेवी रसिकलालजी धारीवाल परिवार ने लिया है। इस मंदिर की अंजनशलाका प्रतिष्ठा खरतरगच्छाधिपति आचार्यश्री जिनमणिप्रभ सूरीश्वरजी म.सा. आदि मुनि मंडल एवं माताजी म.सा. साध्वीश्री रतनमालाश्रीजी म.सा., डॉ. साध्वीश्री विद्युत्प्रभाश्रीजी म.सा. आदि ठाणा की पावन निश्रा में 17 फरवरी 2017 को संपन्न होगा। इस त्रिदिवसीय महामहोत्सव के साथ अंजनशलाका प्रतिष्ठा होगी। इस अवसर पर शासनरत्न श्री मनोजकुमारजी बाबुमलजी हरण पधारेंगे एवं विधिविधान हेतु जयपुर निवासी सुप्रसिद्ध विधिकारक श्री यशवंतजी गोलेच्छा पधारेंगे।
चातुर्मास की घोषणा 16 अप्रैल 2017 को रायपुर (छ.ग.) मेंप.पू खरतरगच्छाधिपति आचार्यश्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. ने प.पु. गणनायक श्री सुखसागरजी म.सा. के समुदाय के साधु-साध्वीजी भगवंतों के आगामी चातुर्मासों की घोषणा रायपुर में 16 अप्रैल 2017 को करने की बात कही है| ज्ञात हो कि इससे पूर्व पालीताना खरतरगच्छ सम्मेलन में यह निर्णय लिया गया था कि समुदाय के समस्त चातुर्मासों का निर्णय पूज्य गच्छाधिपतिश्री द्वारा फाल्गुन सुदि चतुर्दशी के दिन किया जायेगा। चूंकि इस वर्ष गच्छाधिपतिश्री होली चातुर्मास की अवधि में विहार में रहेंगे और 17 फरवरी 2017 को राजगृही नगर में प्रतिष्ठा संपन्न करवाकर रायपुर की ओर विहार करेंगे, अत: होली चातुर्मास के दिन चातुर्मासों की घोषणा नही हो पायेगी। चातुर्मास की विनंती करने हेतु सकल संघ दिनांक 16 अप्रैल 2017 को रायपुर पहुँचेगा।
मेहता परिवार द्वारा 11 दिवसीय सम्मेत शिखरजी यात्रा प्रवास 12 फरवरी 2017 को
मुंबई/गोडवाड ज्योती: प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी सांडेराव निवासी समाजसेवी श्रीमान शा. मगनलालजी मुलचंदजी मेहता परिवार द्वारा 11 दिवसीय श्री सम्मेतशिखरजी एवं पंचतीर्थी की यात्रा का आयोजन किया गया है, जिसके तहत सधार्मिकों को निशुल्क श्री सम्मेतशिखरजी, पावापुरी, राजगीरी, बनारस सहित कई तीर्थों की यात्रा करावाई जायेगी। विदित हो कि सदैव धार्मिक, शिक्षा, चिकित्सा एवं सामाजिक कार्यो में अग्रसर भूमिका निभाने वाले मेहता परिवार द्वारा सधार्मिकों को पिछले 16 वर्षो से भावपूर्वक यात्रा करवाई जा रही है, जिसमें मेहता परिवार तन-मन-धन से संपूर्ण रूप से समर्पित है| इस संघ यात्रा का शुभ प्रस्थान 12/02/2017 एवं वापसी 22/02/2017 को होगी।
ओमबन्ना के पिता का निधन, अंतिम यात्रा में उमड़े लोग
पाली/गोडवाड ज्योती: लोगों की आस्था के प्रतीक लोकदेवता ओमबन्ना के पिता जोगसिंह पातावत की अंतिम यात्रा निकालकर उनकी पार्थिव देह को मुखाग्नि दी गई। ओमबन्ना के पिता के निधन का समाचार मिलते ही गांव में सैकड़ों की संख्या में ग्रामीण रिश्तेदार व ओमबन्ना के भक्त चोटिला गांव पहुंचने शुरू हो गए। उनकी अंतिम यात्रा पुष्प, गुलाल व सिक्के उड़ाते हुए नदी के किनारे पहुंची, जहां उनके पौत्र ने उनकी पार्थिव देह को मुखाग्रि दी। उनकी अंतिम यात्रा में विधायक ज्ञानचंद पारख, सभापति महेन्द्र बोहरा, रोहट सरपंच उदयभान सिंह, रोहट पूर्व सरपंच सिद्धार्थ सिंह सहित पाली, जोधपुर, जालोर, बाड़मेर, जयपुर सहित अन्य शहरों से हजारों की संख्या में जन समुदाय चोटिला पहुंचे। ओमबन्ना के पिता 40 वर्ष तक चोटिला ग्राम पंचायत के सरपंच पद पर कार्यरत रहे। इस कार्यकाल में मात्र एक बार चुनाव हुआ बाकी समय तक निर्विरोध ही सरपंच पद पर काबिज रहे। छह दिवसीय पंचायत सम्मेलन में इंदिरा गांधी के पुत्र संजय गांधी द्वारा उनको बीकानेर में सम्मानित भी किया गया था।
आपने तो 50 दिन का कहा था मोदीजी, अब आगे क्या....?
लालू यादव भले ही देश को याद दिला रहे हो कि 31 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए किसी चौराहे का इंतजाम कर लीजिए। लेकिन सवाल न तो किसी चौराहे का है और ना ही प्रधानमंत्री द्वारा गोवा से देश को दिए संदेश में उनके 50 दिन में सब कुछ ठीक हो जाने के वचन का। बल्कि सवाल यह है कि आखिर 30 दिसंबर को नोटबंदी के पचास दिन पूरे होने के बाद देश के सामने आखिर रास्ता होगा क्या? पचास दिन होने को है। नोट अब तक छप ही रहे हैं। बैंक अभी भी नोटों के इंतजार में हैं। एटीएम के बाहर खाली जेब लोगों की लंबी-लंबी कतारें लगातार बढ़ती जा रही हैं और जनता अभी भी परेशान हैं। मोदी अकेले खेवनहार हैं और सामने सवालिया मुद्रा में खड़ी हैं देश की सवा सौ करोड़ जनता। यह सही है कि मोदी की मारक मुद्राएं विरोधियों को डराने, बेईमानों को धमकाने और भ्रष्ट लोगों को बचकर निकल जाने के भ्रम से निकालने के लिए हैं लेकिन सच यह भी है कि देश अब भी मोदी पर भरोसा करता है इसलिए विपक्षी दलों के बहकावे में नहीं आ रहा। राहुल गांधी कहते रहे कि मोदी ने 50 अमीरों को बचाने के लिए देश को संकट में डाल दिया। ममता बनर्जी भले ही मोदी को कोस रही हों और मायावती भले ही चीखती–चिल्लती रहे कि मोदी देश को बर्बाद कर रहे हैं। लालू यादव भी ललकार रहे हैं लेकिन इनकी सुनता कौन हैं!
और देखते देखते 30 तारीख तो आ गई। नोटबंदी की डेडलाइन खतम होने को है। नोट छापने में तेजी की बातों से लेकर कैशलेस अर्थव्यवस्था को कामयाब करने की दिशा में प्रयत्नों की परिभाषा गढ़ने का वक्त समाप्त हो रहा है। दिहाड़ी मजदूर का भी सारा पैसा बैंकों में जमा हो गया और वह खाली जेब भटक रहा है। कैशलेस के लिए क्रेडिट कार्ड का उपयोग करने और पेटीएम के प्रचार की परिभाषा का दूसरा पहलू यह भी है कि नौकरियां जा रही हैं और रोजगार के अवसर समाप्त हो रहे हैं। भिवंड़ी का 50 फीसदी मजदूर खाली बैठा है। मुंबई के हजारों बंगाली ज्वेलरी कारीगर अपने गांव लौट गए हैं। आगरा में तिलपट्टी बनानेवाले भी हाथ पर हाथ धरे हैं। मुंबई का कंस्टरक्शन मजदूर भी बेकार बैठा है और फिल्मों के लिए अलग-अलग काम में दिहाड़ी काम करने वाले करीब दो लाख लोग भी गांव लौट गए हैं। मनरेगा से लेकर देश भर के दिहाड़ी मजदूर को जोड़ा जाए तो उनका आंकड़ा करीब 27 करोड के पार जाता है। 50 दिन पूरे होने जा रहे हैं लेकिन इन सबकी हथेली खाली है और पेट तो वैसे भी कभी भरा हुआ था ही नही। सरकारी आकड़े बताते हैं कि नवंबर 2015 के मुकाबले इस बार मनरेगा में 55 फिसदी रोजगार कम रहा। नोटबंदी की मार मनरेगा के मजदूर पर इस कदर पड़ेगी, यह सरकार ने भी पता नही, सोचा था या नही? लेकिन यह पक्का है कि मनरेगा का रोजगार भी सिर्फ 100 दिन के लिए ही होता है, साल भर के लिए नही। अब हालात और बिगड़े हैं क्योंकि पैसा तो बैंकों में जमा हो गया और उधर नए नोटों की कमी और पुराने नोटों से खदबदा रहे बैंकों के भीतर का सच यह भी है कि उनकी रोजमर्रा की जिंदगी कब फिर से बहाल होगी, यह वे खुद भी नही जानते। इसलिए सवाल यह नही कि 30 दिसंबर के बाद अचानक कोई जादू की छड़ी अपना काम शुरू कर देगी। मगर, सवाल ये है कि नोटबंदी के बाद देश, तकदीर के जिस तिराहे पर आ खड़ा हुआ है, वहां से जाना किधर है, यह समझ से परे होता जा रहा है। आपने तो कहा था मोदीजी कि ‘50 दिन दीजिए, सिर्फ 50 दिन। सब ठीक हो जाएगा।’ लेकिन सच्चाई यही है कि सब ठीक होना तो छोडिये, हालात में सिर्फ उम्मीद जगाने लायक ही बदलाव आया है। मगर उससे भी बड़ी सच्चाई यह है कि कोई भी व्यवस्था सिर्फ एक रात में खड़ी नही हो सकती या इन्फ्रास्ट्रक्चर कोई जादू की छड़ी घुमाने से विकसित नही हो जाता, यह भी देश जानता है। आपमें भरोसा इसीलिए बना हुआ है।
तस्वीर देखिए, सरकार देश की नोटों की मांग पूरी ना कर पाने के लाचारी की हालत से उबरने के लिए कैशलेस हो जाने का राग आलाप रही हैं लेकिन जिस देश की करीब 30 फीसदी प्रजा को गिनती तक ठीक से लिखनी नही आती हो, जहां के 70 फीसदी गांवों में इंटरनेट तो छोड़ दीजिए, बिजली भी हर वक्त परेशान करती हो। उस हिंदुस्तान में कैशलेस के लिए मोबाइल बटुए, ईपेमेंट, पेटीएम और क्रेडिट कार्ड की कोशिश कितनी सार्थक होगी, यह भी एक सवाल है। देश कतार में है और कतारों से मुक्ति दिलाने वाले का संघर्ष करते दिखने वाले विपक्षी नेता रैलियों में सरकार पर आरोप जड़े जा रहे हैं। लेकिन देश यह समझ गया है कि 30 दिसंबर के बाद अगर हालात सामान्य होने शुरू नही हुए तो न केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मिशन फेल हो जाएगा बल्कि देश को उबारने की एक ईमानदार कोशिश भी फेल हो जाएगी। देश की ज्यादातर जनता भरोसा है कि बीजेपी के उदय के बारे में अटल बिहारी वाजपेयी के सूत्र वाक्य ‘अंधेरा छंटेगा, सूरज उगेगा, कमल खिलेगा’ की तर्ज पर ‘यह साल जाएगा, नया साल आएगा, मोदी के सपनों की खुशहाली लाएगा।’ वैसे भी नोटबंदी की सफलता सिर्फ जनता के विश्वास पर ही टिकी है। इसलिए यह सवाल ही बेमतलब हो जाता है कि देश के करोडो मजदूरों के पास अगर काम ही नही होगा तो वे जाएंगे कहां? गरीब के हाथ में काम नही है तो क्या आने वाले दिनों में अराजकता का माहौल नही बनेगा? नोटबंदी के मामले में मोदी ने जनता का विश्वास अर्जित कर लिया है क्योंकि देश मानने लगा है कि मोदी की यह जंग बेईमानी, भ्रष्टाचार और लूट के खिलाफ, बीते 70 साल की व्यवस्था से उपजी परेशानी के खिलाफ फैसला है।
तो क्या नोटबंदी को प्रधानमंत्री मोदी का सबसे बडा दांव कहा जाए, जिसे उन्होंने देश के विश्वास की बिसात पर खेला है? यानी देश सचमुच बेईमानी और ईमानदारी के बीच बंट चुका है, जैसा कि राहुल गांधी आरोप लगाते हैं? अगर यह आरोप सही है, तो मोदी बिल्कुल सही राह पर जा रहे हैं क्योंकि जंग जब बेईमानी और ईमानदारी की ही है तो जनता सिर्फ ईमानदारी को चुनती है। अब तक का इतिहास गवाह है कि जंग जब आम आदमी के असल मुद्दे की हो और वह भले ही सच भी हो तो भी हर हाल में जीत देश को खोखला बनानेवाली राजनीति की हुई है। मगर शायद पहली बार राजनीति हार रही है और विश्वास जीत रहा है। और यह भी इतिहास है कि इतने खराब और बहुत हद तक खतरनाक हालात में भी देश ने अपने प्रधानमंत्री पर भरोसा किया है कि उन्होंने नोटबंदी के जरिए जो भी किया है, वह देश के अच्छे के लिए किया है। तस्वीर साफ है कि लालू यादव की सलाह पर मोदी के लिए किसी को चौराहा तलाशने की जरूरत नही है। सारी परेशानियों के बावजूद देश भरपूर विश्वास के साथ मोदी के साथ खड़ा है। देश मान रहा है कि 50 दिन आते-आते हालात सुधर रहे हैं तो आगे और सुधरेंगे। वरना हर तरफ हाहाकार मचाते देश में अब तक तो कब का गृहयुद्ध सुलग गया होता। इसलिए राहुल गांधियों, लालू यादवों, मायावतियों, ममता बनर्जियों और अरविंद केजरीवालों को माफ कर दिजिए, चिल्लाने दीजिए। इनकी सुन कौन रहा है? और वैसे भी विपक्ष के पास फिलहाल चिल्लाने के अलावा बचा ही क्या है? नोट तो सारे बैंको में जमा हो गए हैं....!
निरंजन परिहार (लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)
और देखते देखते 30 तारीख तो आ गई। नोटबंदी की डेडलाइन खतम होने को है। नोट छापने में तेजी की बातों से लेकर कैशलेस अर्थव्यवस्था को कामयाब करने की दिशा में प्रयत्नों की परिभाषा गढ़ने का वक्त समाप्त हो रहा है। दिहाड़ी मजदूर का भी सारा पैसा बैंकों में जमा हो गया और वह खाली जेब भटक रहा है। कैशलेस के लिए क्रेडिट कार्ड का उपयोग करने और पेटीएम के प्रचार की परिभाषा का दूसरा पहलू यह भी है कि नौकरियां जा रही हैं और रोजगार के अवसर समाप्त हो रहे हैं। भिवंड़ी का 50 फीसदी मजदूर खाली बैठा है। मुंबई के हजारों बंगाली ज्वेलरी कारीगर अपने गांव लौट गए हैं। आगरा में तिलपट्टी बनानेवाले भी हाथ पर हाथ धरे हैं। मुंबई का कंस्टरक्शन मजदूर भी बेकार बैठा है और फिल्मों के लिए अलग-अलग काम में दिहाड़ी काम करने वाले करीब दो लाख लोग भी गांव लौट गए हैं। मनरेगा से लेकर देश भर के दिहाड़ी मजदूर को जोड़ा जाए तो उनका आंकड़ा करीब 27 करोड के पार जाता है। 50 दिन पूरे होने जा रहे हैं लेकिन इन सबकी हथेली खाली है और पेट तो वैसे भी कभी भरा हुआ था ही नही। सरकारी आकड़े बताते हैं कि नवंबर 2015 के मुकाबले इस बार मनरेगा में 55 फिसदी रोजगार कम रहा। नोटबंदी की मार मनरेगा के मजदूर पर इस कदर पड़ेगी, यह सरकार ने भी पता नही, सोचा था या नही? लेकिन यह पक्का है कि मनरेगा का रोजगार भी सिर्फ 100 दिन के लिए ही होता है, साल भर के लिए नही। अब हालात और बिगड़े हैं क्योंकि पैसा तो बैंकों में जमा हो गया और उधर नए नोटों की कमी और पुराने नोटों से खदबदा रहे बैंकों के भीतर का सच यह भी है कि उनकी रोजमर्रा की जिंदगी कब फिर से बहाल होगी, यह वे खुद भी नही जानते। इसलिए सवाल यह नही कि 30 दिसंबर के बाद अचानक कोई जादू की छड़ी अपना काम शुरू कर देगी। मगर, सवाल ये है कि नोटबंदी के बाद देश, तकदीर के जिस तिराहे पर आ खड़ा हुआ है, वहां से जाना किधर है, यह समझ से परे होता जा रहा है। आपने तो कहा था मोदीजी कि ‘50 दिन दीजिए, सिर्फ 50 दिन। सब ठीक हो जाएगा।’ लेकिन सच्चाई यही है कि सब ठीक होना तो छोडिये, हालात में सिर्फ उम्मीद जगाने लायक ही बदलाव आया है। मगर उससे भी बड़ी सच्चाई यह है कि कोई भी व्यवस्था सिर्फ एक रात में खड़ी नही हो सकती या इन्फ्रास्ट्रक्चर कोई जादू की छड़ी घुमाने से विकसित नही हो जाता, यह भी देश जानता है। आपमें भरोसा इसीलिए बना हुआ है।
तस्वीर देखिए, सरकार देश की नोटों की मांग पूरी ना कर पाने के लाचारी की हालत से उबरने के लिए कैशलेस हो जाने का राग आलाप रही हैं लेकिन जिस देश की करीब 30 फीसदी प्रजा को गिनती तक ठीक से लिखनी नही आती हो, जहां के 70 फीसदी गांवों में इंटरनेट तो छोड़ दीजिए, बिजली भी हर वक्त परेशान करती हो। उस हिंदुस्तान में कैशलेस के लिए मोबाइल बटुए, ईपेमेंट, पेटीएम और क्रेडिट कार्ड की कोशिश कितनी सार्थक होगी, यह भी एक सवाल है। देश कतार में है और कतारों से मुक्ति दिलाने वाले का संघर्ष करते दिखने वाले विपक्षी नेता रैलियों में सरकार पर आरोप जड़े जा रहे हैं। लेकिन देश यह समझ गया है कि 30 दिसंबर के बाद अगर हालात सामान्य होने शुरू नही हुए तो न केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मिशन फेल हो जाएगा बल्कि देश को उबारने की एक ईमानदार कोशिश भी फेल हो जाएगी। देश की ज्यादातर जनता भरोसा है कि बीजेपी के उदय के बारे में अटल बिहारी वाजपेयी के सूत्र वाक्य ‘अंधेरा छंटेगा, सूरज उगेगा, कमल खिलेगा’ की तर्ज पर ‘यह साल जाएगा, नया साल आएगा, मोदी के सपनों की खुशहाली लाएगा।’ वैसे भी नोटबंदी की सफलता सिर्फ जनता के विश्वास पर ही टिकी है। इसलिए यह सवाल ही बेमतलब हो जाता है कि देश के करोडो मजदूरों के पास अगर काम ही नही होगा तो वे जाएंगे कहां? गरीब के हाथ में काम नही है तो क्या आने वाले दिनों में अराजकता का माहौल नही बनेगा? नोटबंदी के मामले में मोदी ने जनता का विश्वास अर्जित कर लिया है क्योंकि देश मानने लगा है कि मोदी की यह जंग बेईमानी, भ्रष्टाचार और लूट के खिलाफ, बीते 70 साल की व्यवस्था से उपजी परेशानी के खिलाफ फैसला है।
तो क्या नोटबंदी को प्रधानमंत्री मोदी का सबसे बडा दांव कहा जाए, जिसे उन्होंने देश के विश्वास की बिसात पर खेला है? यानी देश सचमुच बेईमानी और ईमानदारी के बीच बंट चुका है, जैसा कि राहुल गांधी आरोप लगाते हैं? अगर यह आरोप सही है, तो मोदी बिल्कुल सही राह पर जा रहे हैं क्योंकि जंग जब बेईमानी और ईमानदारी की ही है तो जनता सिर्फ ईमानदारी को चुनती है। अब तक का इतिहास गवाह है कि जंग जब आम आदमी के असल मुद्दे की हो और वह भले ही सच भी हो तो भी हर हाल में जीत देश को खोखला बनानेवाली राजनीति की हुई है। मगर शायद पहली बार राजनीति हार रही है और विश्वास जीत रहा है। और यह भी इतिहास है कि इतने खराब और बहुत हद तक खतरनाक हालात में भी देश ने अपने प्रधानमंत्री पर भरोसा किया है कि उन्होंने नोटबंदी के जरिए जो भी किया है, वह देश के अच्छे के लिए किया है। तस्वीर साफ है कि लालू यादव की सलाह पर मोदी के लिए किसी को चौराहा तलाशने की जरूरत नही है। सारी परेशानियों के बावजूद देश भरपूर विश्वास के साथ मोदी के साथ खड़ा है। देश मान रहा है कि 50 दिन आते-आते हालात सुधर रहे हैं तो आगे और सुधरेंगे। वरना हर तरफ हाहाकार मचाते देश में अब तक तो कब का गृहयुद्ध सुलग गया होता। इसलिए राहुल गांधियों, लालू यादवों, मायावतियों, ममता बनर्जियों और अरविंद केजरीवालों को माफ कर दिजिए, चिल्लाने दीजिए। इनकी सुन कौन रहा है? और वैसे भी विपक्ष के पास फिलहाल चिल्लाने के अलावा बचा ही क्या है? नोट तो सारे बैंको में जमा हो गए हैं....!
निरंजन परिहार (लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)
Tuesday, 10 January 2017
जैन समाज के साहिल जैन बनें प्रथम जेट फायटर पायलट
उत्तरप्रदेश/गोडवाड ज्योती: आसमां में भी सुराख हो सकता है, एक पत्थर तो जोर से उछालो यारों... इसी बात को चरितार्थ कर दिखाया है, जैन समाज के बाईस वर्षीय युवा साहिल एम जैन ने| साहिल के सिर से मां का साया तब उठ गया था, जब वह सातवीं में था। इसके बाद मां की इच्छानुसार साहिल ने सेना में जाने के लिए अथक मेहनत की, जिसके फलस्वरूप जेट फायटर प्लेन के पायलट पद पर चयन हो गया। मिली जानकारी अनुसार ‘साहिल’ जैन समाज का इकलौता युवा है, जो यह मुकाम हासिल कर पाया है। पिता डॉ. एमएल जैन के सुपुत्र साहिल का भारतीय वायुसेना में प्लाइंग ऑफिसर के बाद जेट फायटर पायलट के लिए चयन हुआ है। मूलतः उत्तरप्रदेश के ललीतपुर के मूल निवासी डॉ. जैन दिगम्बर संप्रदाय से है। शिक्षा विभाग इंदौर के अतिरिक्त जिला परियोजना समन्वयक नरेंद्र जैन के भतीजे साहिल रीवा के सैनिक स्कूल में पढ़ने के बाद साहिल ने खड़गवासला पुणे में एनडीए से स्नातक किया। इसके बाद हैदराबाद एयरफोर्स अकादमी से उच्च स्तरीय ट्रेनिंग पाई। इसके बाद फायर फायटर के पायलट पद पर चयनित हुए हैं। साहिल ने बताया कि मम्मी कविता जैन मुझे ऊंचाई भरे मुकाम पर देखना चाहती थी लेकिन वे तब विदा हो गईं, जब मैं सातवीं में पढ़ाई कर रहा था। तभी से मैंने प्रण लिया था कि मां भले ही पास न हों लेकिन वह जहां भी होंगी मुझे ऊंचाइयों पर देखकर जरूर खुश होंगी। जब मेरा चयन जेट फायटर पायलट के लिए हुआ तो लगा कि मैं जब हवा को चीरते हुए डेढ़ से दो हजार किमी की गति से उड़ने वाले विमानों को उड़ाऊंगा तो मां जरूर आसमां से मुझे धरती व आसमां के बीच उड़ते हुए देखेंगी। वे जरूर खुश होंगी। मेरी यह उपलब्धि मां को समर्पित है। साहिल ने युवाओं के नाम संदेश में कहा कि अपने उद्देश्यों को लेकर युवा आगे बढ़ें, सफलता जरूर पाएंगे। सुविधा मिलना या न मिलना अलग बात है लेकिन उद्देश्य प्राप्ति के लिए मेहनत एवं जज्बे के साथ काम करना चाहिए| साहिल ने बताया कि देश की सुरक्षा ही मेरे लिए सर्वोपरि होगी।
Subscribe to:
Comments (Atom)









