सलिल कण हूँ या पारावार हूँ मैं, स्वयं छाया, स्वयं आधार हूँ मैं।
भटकता खोजता हूँ, ज्योति तम में, सुना है ज्योति का आगार हूँ मैं।
मुझे क्या आज ही या कल झरुँ मैं, सुमन हूँ, एक लघु उपहार हूँ मैं।
कहूँ क्या कौन हूँ, क्या आग मेरी, बँधी है लेखनी, लाचार हूँ मैं।।
इतिहास साक्षी रहा है कि युद्ध के मैदान में उपस्थित ना होकर भी राजस्थानी वीरांगनाओ ने अपना अदम्य योगदान प्रस्तुत किया है और वर्तमान में शिक्षा में आगे होने के साथ-साथ बेटियों के समान हक अभियान में कई जागरूकता आई है और यही कारण है कि राजस्थान की महिलाओं ने अपना हुनर और व्यक्तित्व विश्व के समक्ष एक मिसाल के रूप में प्रस्तुत किया है। वैसे तो सेना में अभी तक लड़कों का ही दबदबा रहा है लेकिन देश के लिए कुछ करने के जज्बे ने लड़कियों को फौज की नौकरी के लिए प्रेरित किया और सेना ने भी इन लड़कियों का दिल खोलकर स्वागत किया। इससे पहले हैदराबाद स्थित एयरफोर्स एकेडमी में रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर की मौजूदगी में तीनों महिला फाइटर पायलेट्स की पासिंग आऊट परेड हुई। फिर इंडियन एयरफोर्स की तीन महिला लड़ाकू विमान पायलटों को लड़ाकू विमान उड़ाने का दायित्व मिला। यह पहला मौका होगा जब भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमान की कॉकपिट में कोई महिला बैठकर युद्ध के मैदान में लड़ी और वर्तमान में वायुसेना में करीब १५०० महिलाएं हैं, जो अलग-अलग विभागों में काम कर रही हैं। यानि सारांश यही है कि महिलाओं ने अपने दम पर अनेक क्षेत्रों में मिसालें कायम की हैं, ये तो चंद उदाहरण है। समय में बदलाव आने के साथ लोगो की सोच में भी काफी बदलाव आने लगा है। शिक्षा के विस्तार और समान अधिकार आदि के अभियान ने आधी आबादी कहे जानी वाली महिलाओं को सपना देखने और उस सपने को हकीकत करने की ठोस जमीन प्रदान की है। टीवी ने भी पुरानी सोच में बदलाव लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। टीवी पर विज्ञापन आता है, जिसमें पिता अपने बेटे से कहता है कि अब तुम्हारे प्रमोशन के बाद पैसे बढ़ गए हैं तो बहू को बाहर काम करने की क्या जरूरत है? तब बेटा अपने पिता को जवाब देता है कि पापा, वो घर-खर्च चलाने के लिए काम नही करती है बल्कि उसे अच्छा लगता है इसलिए काम करती है। पीछे खड़ी बहु जब अपने पति की बात सुनती है तो उसका चेहरा दमकने लगता है। यह विज्ञापन हमारे समाज के बदले समय और नए नजरिए को बताता है कि महिला के काम करने का अर्थ सिर्फ पैसा कमाकर घर चलाना भर नही है वरण नौकरी का अर्थ है आत्मनिर्भरता, अपनी स्वायत्ता और स्वतंत्रता। आज से चालीस साल पहले औरत की नौकरी का अर्थ जरूर घर की जरूरतों को पूरा करना होता था, मगर अब नौकरी करने का अर्थ है अपनी शिक्षा का सही उपयोग, खुद का करियर और जरूरतों के लिए किसी के सामने हाथ न फैलाना है।
अंत में सिर्फ इस बात पर आप सभी का ध्यान आकर्षित करना चाहती हूँ कि यह जरूरी नही कि कोई भी नारी शक्ति खुले आसमान में उन्मुक्त होकर उड़ना चाहती है या अनकहे शब्दों को कलम के माध्यम से कागज पर उकेरकर अभिव्यत करना चाहती है। लड़कियां चाहे शहर की हों या गांव की, प्रतिभा सब में होती है। उन्हें जरूरत बस परिजन और समाज के थोड़े-से प्रोत्साहन मिलने की है, बाकि तो वें स्वयं इतनी सक्षम हैं कि शक्ति स्वरूपा को किसी सहायता की जरूरत नही....।
No comments:
Post a Comment