Friday, 25 November 2016

जिले में इस साल अमेरिकी फसल किनोवा की खेती

पाली। प्रदेश में इस समय दक्षिण अमरीकी फसल किनोवा उगाने की पहल जोर पकड़ती जा रही है। पिछले साल चित्तौडग़ढ़ व जालोर में कुछ किसानों द्वारा इसकी सफलता पूर्वक खेती के बाद शासन ने भी इसे बढ़ावा देने का मन बना लिया है। सरकार के निर्देशानुसार कृषि विभाग ने हाल ही में जिले के किसानों को डेढ़ सौ छोटे थैले में भरे किनोवा के बीज वितरित किए। बीज प्राप्त करने वाले किसान कृषि अधिकारियों की देखरेख में इस बार इसकी खेती कर रहे हैं। किनोवा की फसल पर पिछले साल से जोधपुर कृषि विश्वविद्यालय में शोध भी जारी है। डायरेक्टर रिसर्च बीआर चौधरी बताते हैं कि विश्वविद्यालय में हुए प्राथमिक परीक्षण में इसकी खेती राजस्थान की मिट्टी में सफल रही है। हालांकि इसके बाजार भाव का आकलन नहीं किया जा सका है। डॉ. चौधरी बताते हैं कि बाजार अगर सही मिले तो किसानों को वे अगले साल से इसकी खेती करने का सलाह देंगे।

उपवास में सेवन की सलाह
विशेषज्ञों के अनुसार इस फसल के बीज में सबसे ज्यादा प्रोटीन की मात्रा है। इसे देखते हुए वे इसे व्रत एवं उपवास में सेवन की सलाह दे रहे हैं। इनके अनुसार उपवास के समय जहां व्यक्ति को कम से कम अल्पाहार की आवश्यकता होती है, एेसे में इसके सेवन वे सूजी, सूप, दलिया और रोटी बना सकते हैं। इसके सेवन से शरीर को पर्याप्त मात्रा में पोषण मिल जाता है। इसे मरीजों के सेवन के लिए भी बेहतर बताया जा रहा है।

बुवाई में 2 से 4 किलो बीज पर्याप्त
पाली जिले के अधिकारी बताते हैं कि किनोवा के बीज छोटे व दानेदार होने के कारण बुवाई के लिए मात्र 2 से 4 किलो बीज की आवश्यकता होती है। वहीं 24 से 28 डिग्री सेल्सियस तापमान फसल वृद्धि के लिए उपयुक्त रहता है। थ्रेसिंग या हाथों से इसकी बीज की गहाई करते हैं और प्रति हेक्टेयर एक हजार से 1500 किलो तक उत्पादन किसान हासिल कर सकते है । विशेषज्ञों के अनुसार ये क्षारीय व बंजर जैसी भूमि में भी सिंचाई की व्यवस्था करके पैदा किया जा सकता है।

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