Sunday, 4 December 2016

मजदूर कर रहे हैं अपने मालिकों के कालेधन को सफेद

जयपुर/गोडवाड ज्योती: देशभर में चर्चा का विषय बनी कालाधन को सफेद करने की योजना के बीच मोटे पैसे वालों ने दब हुए धन को सफेद करने का नायाब तरीका निकाला है। सरकार कह रही है कि नोटबंदी का सबसे ज़्यादा फ़ायदा समाज के आखिरी पायदान पर खड़े गरीबों को होगा लेकिन कतारों में खड़े मजदूरों से बात करने पर हक़ीकत कुछ और ही सामने आ रही है। जयपुर शहर व उसके आसपास कई फैक्ट्रियों व कारखानों के मालिक अपने पास रखे 500 और 1000 के भरे पड़े नोटो को बदलवाने के लिए अपने कामगारों को काम में ले रहे हैं। ये कामगार कतारों में खड़े होकर 4-4 हजार रुपए बदलवा रहे हैं। काम से भी फैक्ट्री मालिकों ने भी इन मजदूरों को छुट्‌टी दे रखी है। सैकड़ों की संख्या में फैक्ट्रियों के मजदूर बैंको की कतारों में दो नंबर के धन को एक नंबर में करने में जुटे हुए हैं। पिछले दिनों नोटबंदी के बाद कतारों में खड़े लोगों की तक़लीफ़ों को जानने एक बैंक पहुंचकर पता चला कि कुछ मजदूर अपने मालिकों का पैसा बदलवाने कतारों में खड़े होते हैं। ऐसा ही एक कामगार ने कैमरे के डर से कुछ बोलने को तैयार नही हुआ लेकिन बहुत समझाने के बाद और इस शर्त पर कि उसकी पहचान उसके मालिक की पहचान नही बताएंगे, वो बात करने को तैयार हो गया। मजदूर ने बताया कि उसकी फैक्ट्री का मालिक उन्हें दिहाड़ी तब ही देता है जब वो मालिक के रुपये अपने पहचान पत्र दिखाकर बदलवा कर लाते है। हालत इतनी ख़राब है कि मालिक ने सबके मूल पहचान पत्र अपने पास जमा कर लिए हैं और रोज़ नोट बदलवाने के लिए फोटो कॉपी दे देता है। यहां सारे मजदूर बाहर के है, अपने पहचान पत्र छोड़कर घर भी नही जा सकते। गरीब आदमी क्या करे? ऐसी न जाने कितने मजदूर बैंकों की कतार में न जाने किसके-किसके नोट बदलवाने खड़े रहते हैं। न ही इनके पास बैंक खाते हैं न ही जमा कराने के लिए पैसे।
वहीं दूसरी ओर दिहाड़ी मजदूरों को दिनभर कमरतोड़ मेहनत के बाद 300-400 रुपए नसीब होते थे लेकिन अब बैंकों के बाहर नोट बदलने की लाइन में लगकर इसके एवज में उन्हें 400 से 500 रुपए मिल रहे हैं। जुर्माने और कार्रवाई के भय से लोगों ने अपने धन को बाहर निकालना शुरू कर दिया है। इसके लिए सबसे ज्यादा सहारा मजदूरों का लिया जा रहा है। मजदूरों को ढूंढऩे और उन्हें मैनेज करने के लिए दलाल सक्रिय हो गए हैं। मजदूरों व अन्य लोगों को रोजाना बैंक की लाइन में खड़ा कर नकदी जमा करने में लगे हैं। सुबह से शाम तक लाइन में लगकर बड़े व्यापारियों की ब्लैक मनी को व्हाइट में कनवर्ट कराने के लिए इनकी आईडी का इस्तेमाल किया जा रहा है। मजदूरों की निगरानी के लिए एक व्यक्ति को भी तैनात किया गया है ताकि मजदूर पुराने नोट लेकर चंपत न हो जाएं। कई जगह मजदूरों को एक-एक साल की एडवांस सैलेरी देकर उनसे चैक ले लिए गए हैं। कंपनियों के धन्ना सेठ अपने पास पड़े करोड़ों रुपये को अपने मजदूरों में बांट चुके हैं। कुछ जगह पर साल-दो साल के बॉण्ड भरवा लिए गए हैं। अगले एक और दो साल के लिए मजदूरों को अग्रिम वेतन देकर उनसे सपथ पत्र ले लिए गए हैं।

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