Saturday, 3 December 2016

जाली नोटों से पीछा छूटा तो मुद्रा में विश्वास से देश का आत्मविश्वस बढ़ेगा

बैंक और एटीएम पर लाईनों में देश नही सिमटा है। हां, अगर दर्द दिखाने का प्रचार करना है तो यह दोनों अगले पचास दिल तक सही जगह रहेंगी। शादियों की बात करें तो दुल्हनें भारत की हैं तो दूल्हे तथा उनके परिवार वाले भी यहीं के हैं। दूल्हे वाले चुपचाप दुल्हन वालों के यहां जाकर सादगी से शादी की बात कर लें। नही तो दुल्हन वाले हम जैसे स्वतंत्र अर्थशास्त्री की बात भी सुने। शादी को लेकर नकदी के अभाव पर रोने से कोई लाभ नही है। अभी दूल्हे वालों से बात कर लो कि लेन-देन सामान्य स्थिति पर कर लेंगे। अभी हो तो भी खर्च मत करो। यह जो नोट बंद करने का जो निर्णय है यह मामूली नही होता। इस कदम से अर्थव्यवस्था में भारी उलट-पलट की संभावना होती है। इसमें संभव है कि आज जो लड़का तथा उसका परिवार स्थापित दिख रहा है, कल वह सड़क पर आ जाये और जो लड़खड़ाता दिख रहा है, वह चमक जाये। सो पैसे के लेन-देन में पैसा हो या नही ‘देखो और प्रतीक्षा करो’ की नीति अपनाओ। पैसे की कमी का रोना रोकर समाज से सहानुभूति बटोरने की बजाय अपनी अक्ल की आंखें खोलो। फिलहाल तो यही मानकर चलो कि लड़की ही बड़ा धन है। पैसे के मामले में पक्के रहो क्योंकि अपनी ही जायी उस लड़की के लिये वह भविष्य में काम आ सकता है। लड़के वाले शादी तोड़ने के लिये तत्पर हों तो पहल स्वयं ही कर लेना क्योंकि उनका स्थिर परिवार भी माया की आंधी में डांवाडोल हो सकता है।

बैंकों और एटीएमों पर घूमने के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि लाईन में लगे बहुत सारे लोग जरूरतमंद हैं पर सभी नही है। दूसरा अब एटीएम पर पैसे निकलना शुरु हो गये हैं इसलिये मुद्रा की कमी का रोना अब कम होना चाहिये। कालाधन वाले अब इन्हीं लाईनों में अपना खेल करने का प्रयास भी कर सकते हैं। इतना ही नही जैसे ही कुछ लोगों को लगेगा कि जनता अब संतुष्ट हो रही है, वह इन्हीं लाईनों में घुसकर असंतोष भड़काने की कोशिश कर सकते हैं। राष्ट्रवादी भक्तों को यह बता दें कि आने वाले समय में प्रचार माध्यम भी अपना लक्ष्य बदल सकते हैं क्योंकि अभी तक मोदी समर्थक जरूरतमंदों की भीड़ थी इसलिये कोई कुछ नही कर सकता पर जैसे ही वह कम होगी विरोधी खेल दिखाने आ सकते हैं। कोई बतायेगा कि दिल्ली में नोटबंदी के बाद प्रदूषण कम हुआ कि नही? अगर कम हुआ है तो.....इसे नोटबंदी का परिणाम माना जायेगा। साथ ही मुंबई में हफ्तावसूली पर चलने वालों को यह खुशफहमी हो गयी है कि देश कि 125 करोड़ जनता उनकी गुलाम है जो उनके कहने से सड़कों पर आ जायेगी। कालेधन पर प्रहार से उनके हाथी जैसे गुर्गे चूहे बन गये हैं। उन्हें ही साथ रख पाओ यही बहुत है। नोटबंदी से ज्यादा कालाधन नही भी निकलेगा तो क्या जाली मुद्रा से छुटकारा तो मिलेगा।
दीपक भारतदीप

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